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तेरी अमानत

तेरी अमानत
प्रतियोगिता के लिये 


आज भास्कर के हाथ एक पुरानी डायरी लग गई थी। वह उसे उलट पलट कर देखने लगा अचानक उसकी नज़र इस शायरी पर गई।
निगाहों में तेरे बसती हूँ ऐसे।
गोया अमानत किसी और की 
जाऊँगी कहीं न तुम्हें छोड़कर
इतना तो हक रखती खुशी की।

वह सोचने लगा 
हाँ  अमानत ही थी वो मेरी जिंदगी की। कितना चाहा था उसे उसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की थी। वसंत ऋतु की मधु कलिका की तरह वह मेरे दिवस को सुरभित करती थी उसकी मदिर गंध से मैं आतुर पगलाये भ्रमर की भाँति उसकी परिधि में घूमता रहता। मैं कहता वासु -"तुम मुझे छोड़कर जाओगी तो नहीं न '
वसुधा उत्तर देती -" भास्कर और वसुधा का मिलन कभी हो पाया है भला। "
मैं तेरे दिल की अमानत हूँ जिसे तेरी आँखों ने सहेज कर रखा है बस इसी तरह मुझे दिल में बसा कर रखना, आँखों में छिपा कर रखना।
इस पर मैं कहता -" वासु तुम्हारा और हमारा मिलन सचमुच आकाश और धरा की तरह है जो क्षितिज के दो छोर है। नभ आतुर नयनों से उसे निहारता रहता है वसंत में जब वह सजीली दुल्हन की तरह सज जाती है तो वह उससे मिलने के लिये छट पटाने लगता है और प्रेयसी धरा रो रो कर (शीत से )अबतक आद्र हो चुकी होती है
वह सूर्य से कहता है देव आप अभी मृदु रश्मियों को ही धरा पर बिखेरिये वह कोहरे से झुलस गई है।
इसी तरह मैंने तुम्हें अपने नैनों में सहेजकर रखा है। तुम जाति और  वैभव सब हर क्षेत्र में मुझे उच्च हो मेरी और तुम्हारी कोई बराबरी नहीं है।
इस पर वसुधा मुस्करा कर कहती -"वासु तुम भी अठराहवी सदी में जी रहे हो आज ये बातें मायने नहीं रखती हैं। "
भास्कर को तो उसने बहला दिया पर क्या उसके परिवार वाले उसकी सोच पर खरे उतरेंगे इस बात को लेकर उसके मन में संशय था।

आज भास्कर का दोस्त अनिल आने वाला था। वह डायरी को वापस रखकर, उसे
फोन करने ही जा रहा था कि किसी ने दरवाज़ा खटखटाया, उसने दरवाज़ा खोला देखा भास्कर खड़ा था और उसके पीछे घूँघट में एक स्त्री भी थी।
भास्कर -अच्छा अनिल के बच्चे तुम तो बड़े सयाने निकले शादी भी कर ली और बताया भी नहीं। "
भाभी जी प्रणाम 🙏आपने घूँघट क्यूँ डाला हुआ है?
अनिल -"सब यहीं पूछ लेगा या अंदर बुलाएगा?
भास्कर उनदोनो को घर में ले जाता है।
अनिल उस स्त्री से घूँघट हटाने को कहता है।
भास्कर की आँखें आश्चर्य से खुली रह जाती हैं।
"वासु तुम? "
अनिल कहता है -"वासु तुम्हारी अमानत थी मैं दोस्त की अमानत में खयानत कैसे आने देता। "अब संभालो अपनी अमानत।

स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'




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7 Comments

Vedshree

01-Feb-2023 02:39 PM

Bahut sunder 👌

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Pranali shrivastava

31-Jan-2023 03:24 PM

V nice

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